Moral Stories


दान की चर्चा होते ही भामाशाह का नाम स्वयं ही मुँह पर आ जाता है। देश रक्षा के लिए महाराणा प्रताप के चरणों में अपनी सब जमा पूँजी अर्पित करने वाले दानवीर भामाशाह का जन्म अलवर (राजस्थान) में 28 जून, 1547 को हुआ था। उनके पिता श्री भारमल्ल तथा माता श्रीमती कर्पूरदेवी थीं। श्री भारमल्ल राणा साँगा के समय रणथम्भौर के किलेदार थे। अपने पिता की तरह भामाशाह भी राणा परिवार के लिए समर्पित थे।


एक समय ऐसा आया जब अकबर से लड़ते हुए राणा प्रताप को अपनी प्राणप्रिय मातृभूमि का त्याग करना पड़ा। वे अपने परिवार सहित जंगलों में रह रहे थे। महलों में रहने और सोने चाँदी के बरतनों में स्वादिष्ट भोजन करने वाले महाराणा के परिवार को अपार कष्ट उठाने पड़ रहे थे। राणा को बस एक ही चिन्ता थी कि किस प्रकार फिर से सेना जुटाएँ,जिससे अपने देश को मुगल आक्रमणकारियों से चंगुल से मुक्त करा सकंे।


इस समय राणा के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या धन की थी। उनके साथ जो विश्वस्त सैनिक थे, उन्हें भी काफी समय से वेतन नहीं मिला था। कुछ लोगों ने राणा को आत्मसमर्पण करने की सलाह दी; पर राणा जैसे देशभक्त एवं स्वाभिमानी को यह स्वीकार नहीं था। भामाशाह को जब राणा प्रताप के इन कष्टों का पता लगा, तो उनका मन भर आया। उनके पास स्वयं का तथा पुरखों का कमाया हुआ अपार धन था। उन्होंने यह सब राणा के चरणों में अर्पित कर दिया। इतिहासकारों के अनुसार उन्होंने 25 लाख रु. तथा 20,000 अशर्फी राणा को दीं। राणा ने आँखों में आँसू भरकर भामाशाह को गले से लगा लिया।


राणा की पत्नी महारानी अजवान्दे ने भामाशाह को पत्र लिखकर इस सहयोग के लिए कृतज्ञता व्यक्त की। इस पर भामाशाह रानी जी के सम्मुख उपस्थित हो गये और नम्रता से कहा कि मैंने तो अपना कर्त्तव्य निभाया है। यह सब धन मैंने देश से ही कमाया है। यदि यह देश की रक्षा में लग जाये, तो यह मेरा और मेरे परिवार का अहोभाग्य ही होगा। महारानी यह सुनकर क्या कहतीं, उन्होंने भामाशाह के त्याग के सम्मुख सिर झुका दिया।


उधर जब अकबर को यह घटना पता लगी, तो वह भड़क गया। वह सोच रहा था कि सेना के अभाव में राणा प्रताप उसके सामने झुक जायेंगे; पर इस धन से राणा को नयी शक्ति मिल गयी। अकबर ने क्रोधित होकर भामाशाह को पकड़ लाने को कहा। अकबर को उसके कई साथियों ने समझाया कि एक व्यापारी पर हमला करना उसे शोभा नहीं देता। इस पर उसने भामाशाह को कहलवाया कि वह उसके दरबार में मनचाहा पद ले ले और राणा प्रताप को छोड़ दे; पर दानवीर भामाशाह ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अकबर से युद्ध की तैयारी भी कर ली। यह समाचार मिलने पर अकबर ने अपना विचार बदल दिया।


भामाशाह से प्राप्त धन के सहयोग से राणा प्रताप ने नयी सेना बनाकर अपने क्षेत्र को मुक्त करा लिया। भामाशाह जीवन भर राणा की सेवा में लगे रहे। महाराणा के देहान्त के बाद उन्होंने उनके पुत्र अमरसिंह के राजतिलक में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इतना ही नहीं, जब उनका अन्त समय निकट आया, तो उन्होंने अपने पुत्र को आदेश दिया कि वह अमरसिंह के साथ सदा वैसा ही व्यवहार करे, जैसा उन्होंने राणा प्रताप के साथ किया है।

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एक डिप्टी कलेक्टर के तौर पर जब जिला शिक्षा अधिकारी का प्रभार मिलने के बाद ज्वाइन किया, तो जानकारी हुई की ये जिला, स्कूली शिक्षा के लिहाज से बहुत पिछड़ा हुआ हैं |.वरिष्ठ अधिकारियों ने भी कहा आप ग्रामीण इलाकों पर विशेष ध्यान दें |

बस तय कर लिया, महीने में आठ दस दिन जरूर ग्रामीण स्कूलों को दूंगा | शीघ्र ही..ग्रामीण इलाकों में दौरों का सिलसिला चल निकला, पहाड़ी व जंगली इलाका भी था कुछ, एक दिन मातहत कर्मचारियों से मालूम हुआ, "बड़ेरी" नामक गांव, जो एक पहाड़ी पर स्थित है, वहां के स्कूल में कोई शिक्षा अधिकारी नहीं जाता है, क्योंकि वहां पहुंचने के लिए वाहन छोड़ कर लगभग पांच-छः किलोमीटर जंगली रास्ते से पैदल ही जाना होता है | तय कर लिया अगले दिन वहां जाया जाए |


वहां कोई मिस्टर वी. के. वर्मा हेड मास्टर हैं. जो बरसों से, पता नहीं क्यूं वहीं जमे हुए हैं .! मैंने निर्देश दिए उन्हें कोई अग्रिम सूचना न दी जाय, सरप्राइज विजिट होगी..! अगले दिन हम सुबह निकले, दोपहर बारह बजे, ड्राइवर ने कहा "साहब यहां से आगे पहाड़ी पर पैदल ही जाना होगा पाच छः किलोमीटर" |

      

मै और दो अन्य कर्मचारी पैदल ही चल पड़े, लगभग डेढ़ घंटे सकरे .. पथरीले जंगली रास्ते से होकर हम ऊपर गांव तक पहुंचे, सामने स्कूल का पक्का भवन था और लगभग दो  सौ कच्चे पक्के मकान थे | स्कूल साफ सुथरा और व्यवस्थित रंगा पुता हुआ था,  बस तीन कमरे और प्रशस्त बरामदा, चारों तरफ सुरम्य हरा भरा वन |

      

अंदर क्लास रूम में पहुंचे तो तीन कक्षाओं में लगभग सवा सौ बच्चे तल्लीनता पूर्वक पढ़ रहे थे, हालांकि शिक्षक कोई भी नहीं था, एक बुजुर्ग सज्जन बरामदे में थे जो वहां नियुक्त पियून थे शायद ,उन्होंने बताया हेड मास्टर साहब आते ही होंगे, हम बरामदे में बैठ गए थे, तभी देखा एक चालीस पैतालीस वर्ष के सज्जन अपने दोनो हाथो में पानी की बाल्टियां लिए ऊपर चले आ रहे थे. पायजामा घुटनों तक चढ़ाया हुआ था, ऊपर खादी का कुर्ता जैसा था..!

      

उन्होंने आते ही परिचय दिया : "मैं वी के वर्मा यहां हेड मास्टर हूं..। यहां इन दिनों बच्चों के लिए पानी, थोड़ा नीचे जाकर कुंए से लाना होता है ।हमारे चपरासी दादा बुजुर्ग हैं अब उनसे नहीं होता ।इसलिए मै ही लेे आता हूं । वर्जिश भी हो जाती है." वे मुस्कुराकर बोले |

   

उनका चेहरा पहचाना सा लगा और नाम भी, मैंने उनकी और देखकर पूछा : "तुम विवेक हो ना ! इंदौर से, गुजराती कॉलेज!" मैंने हैट उतार दिया था । उसने कुछ पहचानते हुए , चहकते हुए कहा : "आप अभिनव.. !!" अभिनव श्रीवास्तव..! 


मैंने कहा और नहीं तो क्या.. भई..! लगभग बीस बाईस बरस पहले हम इंदौर में साथ ही पढ़े थे |बेहद होशियार और पढ़ाकू था  वो बहुत कोशिश करने के बावजूद शायद ही कभी उससे ज्यादा नंबर आए हों, मेरे!

         

एक प्रतिस्पर्धा रहती थी हमारे बीच..जिसमें हमेशा वही जीता करता था | आज वो हेड मास्टर था और मैं, जिला शिक्षा अधिकारी पहली बार उससे आगे निकलने, जीतने का भाव था | और सच कहूं तो खुशी थी मन में |

       

मैंने सहज होते हुए पूछा :" यहां कैसे पहुंचे, भई..? और कौन कौन है घर पर..?" 

             

उसने विस्तार से बताना शुरू किया : “ एम. कॉम करते समय ही बाबूजी की मालवा मिल वाली नौकरी जाती रही थी, फिर उन्हें दमे की बीमारी भी तो थी..! घर चलाना मुश्किल हो गया था | किसी तरह पढ़ाई पूरी की, नम्बर अच्छे  थे | इसलिए संविदा शिक्षक वर्ग - 3 की नियुक्ति मिल गई थी, जो छोड़ नहीं सकता था | आगे पढ़ने की न गुंजाइश थी न परिस्थितियां, इस गांव में पोस्टिंग मिल गई |


मां बाबूजी को लेकर यहां चला आया, सोचा गांव में कम पैसों में गुजारा हो ही जायेगा..! फिर उसने हंसते हुए कहा : इस दुर्गम गांव में पोस्टिंग और वृद्ध बीमार मां बाप को देख, कोई लड़की वाले लड़की देने तैयार नहीं हुए, इसलिए विवाह नहीं हुआ | और ठीक भी है, कोई पढ़ी लिखी लड़की भला यहां क्या करती..! 

         

अपनी कोई पहुंच या पकड़ थी नही, पैसे भी नहीं थे कि यहां से ट्रांसफर करा पाते, तो बस यहीं जम गए |

यहां आने के कुछ बरस बाद, मां बाबूजी दोनों ही चल बसे,  यथा संभव उनकी सेवा करने का प्रयास किया | अब यहां बच्चों में, स्कूल में मन रम गया है|


छुट्टी के दिन बच्चों को लेकर आस पास की पहाड़ियों पर वृक्षारोपण करने चला जाता हूं | रोज शाम को स्कूल के बरामदे में बुजुर्गों को पढ़ा देता हूं, अब शायद इस गांव में कोई निरक्षर नहीं है | नशा मुक्ति का अभियान भी चला रक्खा है, अपने हाथों से खाना बना लेता हूं और किताबें पढ़ता हूं | बच्चों को अच्छी बुनियादी शिक्षा, अच्छे संस्कार मिल जाएं,  अनुशासन सीखें बस यही ध्येय है |


मै सी ए नहीं कर सका पर मेरे दो विद्यार्थी सी.ए. हैं, और कुछ अच्छी नौकरी में भी। मेरा यहां कोई ज्यादा खर्च है नहीं, मेरी ज्यादातर तनख़ा इन बच्चों के खेल कूद और स्कूल पर खर्च हो जाती हैं, तुम तो जानते हो कॉलेज के जमाने से क्रिकेट खेलने का जुनून था..! वो बच्चों के साथ खेल कर पूरा हो जाता है, बड़ा सुकून मिलता है"

      

मैंने टोकते हुए कहा : मां बाबूजी के बाद शादी का विचार नहीं आया..? उसने मुस्कुराते हुए कहा :“दुनियां में सारी अच्छी चीजें मेरे लिये नहीं बनी है", "इसलिए जो सामने है, उसी को अच्छा करने या बनाने की कोशिश कर रहा हूं"| फिर अपने परिचित दिलचस्प अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला.“  

अरे वो फ़ैज़ साहेब की एक नज़्म में है न..! .


"अपने बेख्वाब किवाड़ों को मुकफ्फल कर लो..अब यहां कोई नहीं..कोई नहीं आएगा", उसकी उस बेलौस हंसी ने भीतर तक भिगो दिया था | लौटते हुए मैंने उससे कहा.."विवेक..तुम जब चाहो तुम्हारा ट्रांसफर मुख्यालय या जहां तुम चाहो करा दूंगा", उसने मुस्कुराते हुए कहा : "अब बहुत देर हो चुकी है | जनाब,अब यहीं इन लोगों के बीच खुश हूं", कहकर उसने हाथ जोड़ दिए..

      

मेरी अपनी उपलब्धियों से उपजा दर्प, उससे आगे निकल जाने का अहसास, भरम चूर चूर हो गया था |  वो अपनी जिंदगी की तमाम कमियों.. तकलीफों.. असुविधाओं के बावजूद सहज था, उसकी कर्तव्यनिष्ठा देख कर मै हतप्रभ था, जिंदगी से..किसी शिकवे या शिकायत की कोई झलक उसके व्यवहार में.नहीं थी | सुख-सुविधाओं उपलब्धियों ओहदों के आधार पर हम लोगों का मूल्यांकन करते हैं, लेकिन वो इन सब के बिना मुझे फिर पराजित कर गया था..!

  

लौटते समय उस कर्म ऋषि को हाथ जोड़कर..भरे मन से इतना ही कह सका : "तुम्हारे इस पुनीत कार्य में कभी मेरी जरूरत पड़े तो जरूर याद करना मित्र"|

आपका प्रशासनिक औहोदा क्या था या क्या है यह कोई महत्व नहीं रखता यदि आप एक अच्छे इंसान नहीं बन पाए..

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क़ौआ एकमात्र पक्षी हैं जो बाज़ पर चोंच मारने की हिम्मत करता है, वह बाज़ की पीठ पर बैठता है और उसकी गर्दन पर काटता है, लेकिन बाज़ जवाब नहीं देता है, और न ही कौवा से लड़ता है और न ही कौवा पर समय बर्बाद करता है वह बस अपने पंख खोलता है और आसमान  में ऊंचा उठना शुरू कर देता है, 
उड़ान जितनी ऊंची होती है, 
उतना ही मुश्किल होता है ऊपर साँस लेना और फिर ऑक्सीजन की कमी के कारण कौआ गिर जाता हैं ! 
कौवे के साथ अपना समय बर्बाद करना बंद करो, 
बस आप ख़ुद ऊंचाइयों पर चले जाओं ,और वे ऐसे ही मिट जाएंगे !! 
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अमेरिका में एक पंद्रह साल का लड़का था, स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ा गया। पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया। जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा, *"तुमने क्या सचमुच कुछ चुराया था ब्रैड और पनीर का पैकेट"।लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया। लड़का, 'हाँ'।
जज, 'क्यों ?' लड़का, 'मुझे ज़रूरत थी।'
जज, 'खरीद लेते।' लड़का, 'पैसे नहीं थे।'
जज, 'घर वालों से ले लेते।' लड़का, 'घर में सिर्फ मां है, बीमार और बेरोज़गार है, ब्रैड और पनीर भी उसी के लिए चुराई थी। जज, 'तुम कुछ काम नहीं करते ?' लड़का, 'करता था एक कार वाश में। मां की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी की थी, तो मुझे निकाल दिया गया।' जज, 'तुम किसी से मदद मांग लेते?' लड़का, 'सुबह से घर से निकला था, तकरीबन पचास लोगों के पास गया, बिल्कुल आख़िर में ये क़दम उठाया।'
जिरह ख़त्म हुई, जज ने फैसला सुनाना शुरू किया, 'चोरी और ख़ुसूसन ब्रैड की चोरी बहुत शर्मनाक जुर्म है और इस जुर्म के हम सब ज़िम्मेदार हैं। 'अदालत में मौजूद हर शख़्स मुझ सहित  सब मुजरिम हैं, इसलिए यहाँ मौजूद हर शख़्स पर दस-दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है। दस डालर दिए बग़ैर कोई भी यहां से बाहर नहीं निकल सकेगा।'
ये कह कर जज ने दस डालर अपनी जेब से बाहर निकाल कर रख दिए और फिर पेन उठाया लिखना शुरू किया:- 'इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूं कि उसने एक भूखे बच्चे से ग़ैर इंसानी सुलूक करते हुए पुलिस के हवाले किया। अगर चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं किया तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म दे देगी।' जुर्माने की पूर्ण राशि इस लड़के को देकर कोर्ट उस लड़के से माफी तलब करती है। 
फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बरस ही रहे थे, उस लड़के के भी हिचकियां बंध गईं। वह लड़का बार बार जज को देख रहा था जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गये।
🤔 क्या हमारा समाज, सिस्टम और अदालत इस तरह के निर्णय के लिए तैयार हैं? *चाणक्य ने कहा है कि यदि कोई भूखा व्यक्ति रोटी चोरी करता पकड़ा जाए तो उस देश के लोगों को शर्म आनी चाहिए


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*अद्भुत कहानि*
एक दिन, *मेरे पिता ने हलवे के 2 कटोरे बनाये और उन्हें मेज़ पर रख दिया।*
     एक के ऊपर 2 बादाम थे, जबकि दूसरे कटोरे में हलवे के ऊपर कुछ नहीं था।
     फिर उन्होंने मुझे हलवे का कोई एक कटोरा चुनने के लिए कहा, क्योंकि उन दिनों तक हम गरीबों के घर बादाम आना मुश्किल था.... मैंने 2 बादाम वाले कटोरे को चुना!
      मैं अपने बुद्धिमान विकल्प / निर्णय पर खुद को बधाई दे रहा था, और जल्दी जल्दी मुझे मिले 2 बादाम हलवा खा रहा था।
      परंतु मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था, जब मैंने देखा कि की मेरे पिता वाले कटोरे के नीचे *8 बादाम* छिपे थे!
     बहुत पछतावे के साथ, मैंने अपने निर्णय में जल्दबाजी करने के लिए खुद को डांटा।
      मेरे पिता मुस्कुराए और मुझे यह याद रखना सिखाया कि,
    *आपकी आँखें जो देखती हैं वह हरदम सच नहीं हो सकता, उन्होंने कहा कि यदि आप स्वार्थ की आदत की अपनी आदत बना लेते हैं तो आप जीत कर भी हार जाएंगे।*
     अगले दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए और टेबल पर रक्खे एक कटोरा के शीर्ष पर 2 बादाम और दूसरा कटोरा जिसके ऊपर कोई बादाम नहीं था।
     फिर से उन्होंने मुझे अपने लिए कटोरा चुनने को कहा। इस बार मुझे कल का संदेश याद था, इसलिए मैंने शीर्ष पर बिना किसी बादाम कटोरी को चुना।
     परंतु मेरे आश्चर्य करने के लिए इस बार इस कटोरे के नीचे एक भी बादाम नहीं छिपा था! 
     फिर से, मेरे पिता ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, *"मेरे बच्चे, आपको हमेशा अनुभवों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी, जीवन आपको धोखा दे सकता है या आप पर चालें खेल सकता है स्थितियों से कभी भी ज्यादा परेशान या दुखी न हों, बस अनुभव को एक सबक अनुभव के रूप में समझें, जो किसी भी पाठ्यपुस्तकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।*
     तीसरे दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए।
     पहले 2 दिन की ही तरह, एक कटोरे के ऊपर 2 बादाम, और दूसरे के शीर्ष पर कोई बादाम नहीं। मुझे उस कटोरे को चुनने के लिए कहा जो मुझे चाहिए था।
     लेकिन इस बार, मैंने अपने पिता से कहा, *पिताजी, आप पहले चुनें, आप परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं । आप मेरे लिए जो अच्छा होगा वही चुनेंगे*।
      मेरे पिता मेरे लिए खुश थे।
उन्होंने शीर्ष पर 2 बादाम के साथ कटोरा चुना, लेकिन जैसा कि मैंने अपने  कटोरे का हलवा खाया!  कटोरे के हलवे के एकदम नीचे 4 बादाम और थे।😊😟
      मेरे पिता मुस्कुराए और मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए, उन्होंने कहा *मेरे बच्चे, तुम्हें याद रखना होगा कि, जब तुम भगवान पर सब कुछ छोड़ देते हो, तो वे हमेशा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का चयन करेंगे।*
    *और जब तुम दूसरों की भलाई के लिए सोचते हो, अच्छी चीजें स्वाभाविक तौर पर आपके साथ भी हमेशा होती रहेंगी ।*

शिक्षा:  बड़ों का सम्मान करते हुए उन्हें पहले मौका व स्थान देवें, बड़ों का आदर-सम्मान करोगे तो कभी भी खाली हाथ नही लौटोगे ।   *"अनुभव व  दृष्टि का ज्ञान व विवेक के साथ सामंजस्य हो जाये बस यही सार्थक जीवन है।"*

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*"स्वाभिमान, वात्सल्य और प्रेम"*
शाम हो चली थी..लगभग साढ़े छह बजे थे..वही हॉटेल, वही किनारे वाली टेबल और वही चाय, सिगरेट के एक कश के साथ साथ चाय की चुस्की ले रहा था..उतने में ही सामने वाली टेबल पर एक आदमी अपनी नौ-दस साल की लड़की को लेकर बैठ गया..उस आदमी का शर्ट फटा हुआ था, ऊपर की दो बटने गायब थी. पैंट भी मैला ही था, रास्ते पर खुदाई का काम करने वाला मजदूर जैसा लग रहा था..लड़की का फ्रॉक धुला हुआ था और उसने बालों में वेणी भी लगाई हुई थी..उसके चेहरा अत्यंत आनंदित था और वो बड़े कुतूहल से पूरे हॉटेल को इधर-उधर से देख रही थी.. 
उनके टेबल के ऊपर ही चल रहे पँखे को भी वो बार-बार देख रही थी, जो उनको ठंडी हवा दे रहा था..बैठने के लिये गद्दी वाली कुर्सी पर बैठकर वो और भी प्रसन्न दिख रही थी..उसी समय वेटरने दो स्वच्छ गिलासों में ठंडा पानी उनके सामने रखा..उस आदमी ने अपनी लड़की के लिये एक डोसा लाने का आर्डर दिया. 
यह आर्डर सुनकर लड़की के चेहरे की प्रसन्नता और बढ़ गई..और तुमको? वेटर ने पूछा..नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिये: उस आदमी ने कहा.
कुछ ही समय में गर्मागर्म बड़ा वाला, फुला हुआ डोसा आ गया, साथ में चटनी-सांभार भी..लड़की डोसा खाने में व्यस्त हो गई. और वो उसकी ओर उत्सुकता से देखकर पानी पी रहा था..इतने में उसका फोन बजा. वही पुराना वाला फोन. उसके मित्र का फोन आया था, वो बता रहा था कि आज उसकी लड़की का जन्मदिन है और वो उसे लेकर हॉटेल में आया है..
वह बता रहा था कि उसने अपनी लड़की को कहा था कि यदि वो अपनी स्कूल में पहले नंबर लेकर आयेगी तो वह उसे उसके जन्मदिन पर डोसा खिलायेगा..और वो अब डोसा खा रही है..थोडा पॉज..नहीं रे, हम दोनों कैसे खा सकते हैं? हमारे पास इतने पैसे कहां है? मेरे लिये घर में बेसन-भात बना हुआ है ना..
उसकी बातों में व्यस्त रहने के कारण मुझे गर्म चाय का चटका लगा और मैं वास्तविकता में लौटा..कोई कैसा भी हो..अमीर या गरीब,दोनों ही अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कान देखने के लिये कुछ भी कर सकते हैं..
मैं उठा और काउंटर पर जाकर अपनी चाय और दो दोसे के पैसे दिये और कहा कि उस आदमी को एक और डोसा दे दो उसने अगर पैसे के बारे में पूछा  तो उसे कहना कि हमनें तुम्हारी बातें सुनी आज तुम्हारी बेटी का जन्मदिन है और वो स्कूल में पहले नंबर पर आई है..
इसलिये हॉटेल की ओर से यह तुम्हारी लड़की के लिये ईनाम उसे आगे चलकर इससे भी अच्छी पढ़ाई करने को बोलना..परन्तु, परंतु भूलकर भी "मुफ्त" शब्द का उपयोग मत करना, उस पिता के "स्वाभिमान" को चोट पहुचेंगी..होटल मैनेजर मुस्कुराया और बोला कि यह बिटिया और उसके पिता आज हमारे मेहमान है, आपका बहुत-बहुत आभार कि आपने हमें इस बात से अवगत कराया।
उनकी आवभगत का पूरा जिम्मा आज हमारा है आप यह  पुण्य कार्य और किसी अन्य जरूरतमंद के लिए कीजिएगा।वेटर ने एक और डोसा उस टेबल पर रख दिया, मैं बाहर से देख रहा था..उस लड़की का पिता हड़बड़ा गया और बोला कि मैंने एक ही डोसा बोला था..
तब मैनेजर ने कहा कि, अरे तुम्हारी लड़की स्कूल में पहले नंबर पर आई है..
इसलिये ईनाम में आज हॉटेल की ओर से तुम दोनों को डोसा दिया जा रहा है,
उस पिता की आँखे भर आई और उसने अपनी लड़की को कहा, देखा बेटी ऐसी ही पढ़ाई करेंगी तो देख क्या-क्या मिलेगा..उस पिता ने वेटर को कहा कि क्या मुझे यह डोसा बांधकर मिल सकता है? यदि मैं इसे घर ले गया तो मैं और मेरी पत्नी दोनों आधा-आधा मिलकर खा लेंगे, उसे ऐसा खाने को नहीं मिलता...
जी नहीं श्रीमान आप अपना दूसरा यहीं पर थोड़ा खाइए।
आपके घर के लिए मैंने 3 डोसे  और मिठाइयों का एक पैक अलग से बनवाया है।
आज आप घर जाकर अपनी बिटिया का बर्थडे बड़ी धूमधाम से मनाइए गा और मिठाईयां इतनी है कि आप पूरे मोहल्ले को बांट सकते हो
यह सब सुनकर मेरी आँखे खुशी से भर आई,मुझे इस बात पर पूरा विश्वास हो गया कि जहां चाहे वहां राह है अच्छे काम के लिए एक कदम आप आगे तो बढ़ाइए,फिर देखिए आगे आगे होता है क्या!!!
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आज के छात्रों को भी नहीं पता होगा कि भारतीय भाषाओं की वर्णमाला विज्ञान से भरी है। 

वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर तार्किक है और सटीक गणना के साथ क्रमिक रूप से रखा गया है। इस तरह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अन्य विदेशी भाषाओं की वर्णमाला में शामिल नहीं है। 

#जैसे_देखें.....

 *क ख ग घ ड़* - पांच के इस समूह को "कण्ठव्य" *कंठवय* कहा जाता है। क्योंकि इस का उच्चारण करते समय कंठ से ध्वनि निकलती है। उच्चारण का प्रयास करें।

 *च छ ज झ ञ* - इन पाँचों को "तालव्य" *तालु* कहा जाता है। क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ तालू महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें।

 *ट ठ ड ढ ण*  - इन पांचों को "मूर्धन्य" *मुर्धन्य* कहा जाता है। क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ मुर्धन्य (ऊपर उठी हुई) महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें।

 *त थ द ध न* - पांच के इस समूह को *दन्तवय* कहा जाता है। क्योंकि यह उच्चारण करते समय जीभ दांतों को छूती है। कोशिश करें।

 *प फ ब भ म* - पांच के इस समूह को कहा जाता है- *अनुष्ठान*। क्योंकि दोनों होठ इस उच्चारण के लिए मिलते हैं। कोशिश करें।

दुनियां की किसी भी अन्य भाषा में ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है ? हमें अपनी भारतीय भाषा के लिए गर्व की आवश्यकता है, लेकिन साथ ही हमें यह भी बताना चाहिए कि दुनियां को क्यों और कैसे बताएं ?

 *Hindi भाषा का गौरव बढ़ाएँ।* ....
  🙏🌹🙏
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कल एक मित्र ने दूसरे को पूछा : 2020 वर्ष ने हमें क्या दिया ???  क्या दे रहा है???
क्या देगा ???
वह बोला,कोरोना, चक्रवात, व्यवसाय- नौकरी में नुकसान, मानसिक तनाव, आत्महत्या. चीन, पाकिस्तान के साथ युद्ध जैसी स्थिति ...!!!दूसरा बोला,
नहीं दोस्त, गलत सोच रहे हो...सच में  देखा जाए तो 2020 ने हमें संघर्ष करना सिखाया है ...देश में स्वच्छता कितनी जरूरी है, ये सिखाया ... 
सावधानी बरतना... 
एकदूसरे की मदद करना ...
प्रकृति को सहेजना ...अन्न की कीमत...मानसिक संतुलन ...अनेकों नये मेनू...
विविध तर्कपूर्ण लेख और पोस्ट...मन को गुदगुदा देनेवाली अनेकों हास्य और व्यंगात्मक पोस्ट ...इस साल ने हमें बताया कि कम खर्च में शादी और कम लोगों में भी अंतिम संस्कार हो सकता है ...इसी वर्ष ने बिना मेकअप के ओरिजिनल चेहरे दिखाये ...घर में रहने के लिए आवश्यक संयम दिया ...
घर के लोगों के साथ बातचीत करने का बहुमूल्य अवसर दिया ...समय आने पर पास-पड़ोसी, अपने रिश्तेदारों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं, ये बताया ...प्रदूषण में कमी ...भविष्य में आनेवाली किसी भी बड़ी विपदा से निपटने की मानसिक तैयारी करायी ...
यही सब तो सिखाया है इस 2020 साल ने.इस अवधि में हमने कई महत्वपूर्ण लोगों को अवश्य खोया ...
लेकिन अमीरी-गरीबी का भेद मिटा दिया इस साल ने...
अबतक हम जिन्हें अपने पूजास्थलों पर देखते थे, उस परमशक्ति ईश्वर का दर्शन कराया है इस साल ने.
जीवन का सही मूल्य समझा है हमने ... हमने जाना, सही अर्थों में जीना कितना आसान है ...हमारी सही क्षमता पहचानने का और सकारात्मक विचारों को अपनाने का सुनहरा मौका मिला ...
*केवल इसी साल में*
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*💥सातवां घड़ा💥*
गाँव में एक नाई अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। नाई ईमानदार था,अपनी कमाई से संतुष्ट था। उसे किसी तरह का लालच नहीं था। नाई की पत्नी भी अपनी पति की कमाई हुई आय से बड़ी कुशलता से अपनी गृहस्थी चलाती थी। कुल मिलाकर उनकी जिंदगी बड़े आराम से हंसी-खुशी से गुजर रही थी।
नाई अपने काम में बहुत निपुण था। एक दिन वहाँ के राजा ने नाई को अपने पास बुलवाया और रोज उसे महल में आकर हजामत बनाने को कहा।नाई ने भी बड़ी प्रसन्नता से राजा का प्रस्ताव मान लिया। नाई को रोज राजा की हजामत बनाने के लिए एक स्वर्ण मुद्रा मिलती थी।इतना सारा पैसा पाकर नाई की पत्नी भी बड़ी खुश हुई। अब उसकी जिन्दगी बड़े आराम से कटने लगी। घर पर किसी चीज की कमी नहीं रही और हर महीने अच्छी रकम की बचत भी होने लगी। नाई, उसकी पत्नी और बच्चे सभी खुश रहने लगे।
एक दिन शाम को जब नाई अपना काम निपटा कर महल से अपने घर वापस जा रहा था, तो रास्ते में उसे एक आवाज सुनाई दी।आवाज एक यक्ष की थी। यक्ष ने नाई से कहा, ‘‘मैंने तुम्हारी ईमानदारी के बड़े चर्चे सुने हैं, मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत खुश हूँ और तुम्हें सोने की मुद्राओं से भरे सात घड़े देना चाहता हूँ। क्या तुम मेरे दिये हुए घड़े लोगे ? नाई पहले तो थोड़ा डरा, पर दूसरे ही पल उसके मन में लालच आ गया और उसने यक्ष के दिये हुए घड़े लेने का निश्चय कर लिया। नाई का उत्तर सुनकर उस आवाज ने फिर नाई से कहा, ‘‘ठीक है सातों घड़े तुम्हारे घर पहुँच जाएँगे।’’
नाई जब उस दिन घर पहुँचा, वाकई उसके कमरे में सात घड़े रखे हुए थे। नाई ने तुरन्त अपनी पत्नी को सारी बातें बताईं और दोनों ने घड़े खोलकर देखना शुरू किया। उसने देखा कि छः घड़े तो पूरे भरे हुए थे, पर सातवाँ घड़ा आधा खाली था। नाई ने पत्नी से कहा—‘‘कोई बात नहीं, हर महीने जो हमारी बचत होती है, वह हम इस घड़े में डाल दिया करेंगे। जल्दी ही यह घड़ा भी भर जायेगा। और इन सातों घड़ों के सहारे हमारा बुढ़ापा आराम से कट जायेगा।अगले ही दिन से नाई ने अपनी दिन भर की बचत को उस सातवें में डालना शुरू कर दिया। पर सातवें घड़े की भूख इतनी ज्यादा थी कि वह कभी भी भरने का नाम ही नहीं लेता था। धीरे-धीरे नाई कंजूस होता गया और घड़े में ज्यादा पैसे डालने लगा, क्योंकि उसे जल्दी से अपना सातवाँ घड़ा भरना था। नाई की कंजूसी के कारण अब घर में कमी आनी शुरू हो गयी, क्योंकि नाई अब पत्नी को कम पैसे देता था। पत्नी ने नाई को समझाने की कोशिश की, पर नाई को बस एक ही धुन सवार थी—सातवां घड़ा भरने की। अब नाई के घर में पहले जैसा वातावरण नहीं था। उसकी पत्नी कंजूसी से तंग आकर बात-बात पर अपने पति से लड़ने लगी। घर के झगड़ों से नाई परेशान और चिड़चिड़ा हो गया। एक दिन राजा ने नाई से उसकी परेशानी का कारण पूछा। नाई ने भी राजा से कह दिया अब मँहगाई के कारण उसका खर्च बढ़ गया है। नाई की बात सुनकर राजा ने उसका मेहताना बढ़ा दिया, पर राजा ने देखा कि पैसे बढ़ने से भी नाई को खुशी नहीं हुई, वह अब भी परेशान और चिड़चिड़ा ही रहता था।
एक दिन राजा ने नाई से पूछ ही लिया कि कहीं उसे यक्ष ने सात घड़े तो नहीं दे दिये हैं ? नाई ने राजा को सातवें घड़े के बारे में सच-सच बता दिया। तब राजा ने नाई से कहा कि सातों घड़े यक्ष को वापस कर दो, क्योंकि सातवां घड़ा साक्षात लोभ है, उसकी भूख कभी नहीं मिटती। नाई को सारी बात समझ में आ गयी। नाई ने उसी दिन घर लौटकर सातों घड़े यक्ष को वापस कर दिये।
घड़ों के वापस जाने के बाद नाई का जीवन फिर से खुशियों से भर गया था।
कहानी हमें बताती है कि हमें कभी लोभ नहीं करना चाहिए। भगवान ने हम सभी को अपने कर्मों के अनुसार चीजें दी हैं, हमारे पास जो है, हमें उसी से खुश रहना चाहिए। अगर हम लालच करे तो सातवें घड़े की तरह उसका कोई अंत नहीं होता।
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                The Nobel Laureate Prof. C. V. Raman after retirement wished to open a Research Institute in Bangalore. So he gave an advertisement in the newspapers for recruiting three physicists. Lots of eager Scientists applied thinking that even if they were not selected, they would at least get an opportunity to meet the Nobel Laureate. 
Nobel Laureate Prof. C. V. Raman
 Prof. C. V. Raman
           In the preliminary selection, five candidates were selected and the final interview was to be taken by Prof. C V Raman himself. Three were selected out of the five. Next day Prof. Raman was taking a walk and found one young man waiting to meet him. He realized that it was the same man who was not selected. 
The Prof.  asked him what was the problem and he replied that there was no problem at all, but after finishing the interview the office had paid him ₹7 extra than his claim and he wanted to return it. But because the accounts had closed, they could not take back the amount and asked him to enjoy. The man said that it is not right for him to accept the money which did not belong to him. Prof. C V Raman told him, so you wish to return the ₹7 and he took the money from him. After going few  steps forward the Prof. asked the young man to meet him the next day at 10.30 am. The man was happy that he would get an opportunity to meet the great man again.When he met the Prof.  next day the Nobel Laureate told the young man "son, you failed in the Physics test but you have passed the honesty test. So I have created another post for you". 
    The young man was surprised and very happy to join.Later on he too became a Nobel Laureate in 1983. This young man was  Prof. Subrahmanyan Chandrashekhar (US Citizen of Indian Origin). He has written a book on how the seven rupees changed his life. This was how Honesty made a Great Scientist. What is lacking in Talent can most often be made up for, with Hard work, guidance and help from others, but, what is lacking in Character and Values can’t be made up for with anything ever.
        
Einstein
Einstein 
Which is why Einstein said, “Don’t try to be a person of Success, but always be a Person of Value".

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हुआ यूँ कि जंगल के राजा शेर ने ऐलान कर दिया कि अब आज के बाद कोई अनपढ़ न रहेगा। हर पशु को अपना बच्चा स्कूल भेजना होगा। राजा साहब का स्कूल पढ़ा-लिखाकर सबको Certificate बाँटेगा।
सब बच्चे चले स्कूल। हाथी का बच्चा भी आया, शेर का भी, बंदर भी आया और मछली भी, खरगोश भी आया तो कछुआ भी, ऊँट भी और जिराफ भी।
FIRST UNIT TEST/EXAM हुआ तो हाथी का बच्चा फेल। अब हाथी की पेशी हुई स्कूल में, मास्टरनी बोली,"आपने पैदा करके मुसीबत छोड़ दिये हो मेरे लिये ? औलाद पर ध्यान दीजिए, फेल हो गए हैं। जनाब, इनके कारण मेरा रिजल्ट खराब होगा। तुम्हारे नालायक बेटे के कारण मेरा रिजल्ट खराब हो, ये मुझे मंजूर नहीं।" "किस Subject में फेल हो गया जी?" "पेड़ पर चढ़ने में फेल हो गया, हाथी का बच्चा।" "अब का करें?" "ट्यूशन रखाओ, कोचिंग में भेजो।" अब हाथी की जिन्दगी का एक ही मक़सद था कि हमारे बच्चे को पेड़ पर चढ़ने में Top कराना है।
किसी तरह साल बीता। Final Result आया तो हाथी, ऊँट, जिराफ सब फेल हो गए। बंदर की औलाद first आयी। Principal ने Stage पर बुलाकर मैडल दिया। बंदर ने उछल-उछल के कलाबाजियाँ दिखाकर। गुलाटियाँ मार कर खुशी का इजहार किया। उधर अपमानित महसूस कर रहे हाथी, ऊँट और जिराफ ने अपने-अपने बच्चे कूट दिये। नालायकों, इतने महँगे स्कूल में पढ़ाते हैं तुमको, ट्यूशन-कोचिंग सब लगवाए हैं। फिर भी आज तक तुम पेड़ पर चढ़ना नहीं सीखे। सीखो, बंदर के बच्चे से सीखो कुछ, पढ़ाई पर ध्यान दो।
फेल हालांकि मछली भी हुई थी। बेशक़ Swimming में First आयी थी पर बाकी subject में तो फेल ही थी। मास्टरनी बोली,"आपकी बेटी  के साथ attendance की problem है।" मछली ने बेटी को ऑंखें दिखाई। बेटी ने समझाने की कोशिश की कि,"माँ, मेरा दम घुटता है इस स्कूल में। मुझे साँस ही नहीं आती। मुझे नहीं पढ़ना इस स्कूल में। हमारा स्कूल तो तालाब में होना चाहिये न?" नहीं, ये राजा का स्कूल है। तालाब वाले स्कूल में भेजकर मुझे अपनी बेइज्जती नहीं करानी। समाज में कुछ इज्जत Reputation है मेरी। तुमको इसी स्कूल में पढ़ना है। पढ़ाई पर ध्यान दो।"
हाथी, ऊँट और जिराफ अपने-अपने Failure बच्चों को कूटते हुए ले जा रहे थे। रास्ते में बूढ़े बरगद ने पूछा,"क्यों कूट रहे हो, बच्चों को?" जिराफ बोला,"पेड़ पर चढ़ने में फेल हो गए?"
बूढ़ा बरगद सबसे पते की बात बोला,"पर इन्हें पेड़ पर चढ़ाना ही क्यों है ?" उसने हाथी से कहा,"अपनी सूंड उठाओ और सबसे ऊँचा फल तोड़ लो। जिराफ तुम अपनी लंबी गर्दन उठाओ और सबसे ऊँचे पत्ते तोड़-तोड़ कर खाओ।" ऊँट भी गर्दन लंबी करके फल पत्ते खाने लगा। हाथी के बच्चे को क्यों चढ़ाना चाहते हो पेड़ पर।मछली को तालाब में ही सीखने दो न?
Giraffe Tortoise
MonkeyFish

*दुर्भाग्य से आज स्कूली शिक्षा का पूरा Curriculum और Syllabus सिर्फ बंदर के बच्चे के लिये ही Designed है। इस स्कूल में 35 बच्चों की क्लास में सिर्फ बंदर ही First आएगा। बाकी सबको फेल होना ही है। हर बच्चे के लिए अलग Syllabus, अलग subject और अलग स्कूल चाहिये।*
हाथी के बच्चे को पेड़ पर चढ़ाकर अपमानित मत करो। जबर्दस्ती उसके ऊपर फेलियर का ठप्पा मत लगाओ। ठीक है, बंदर का उत्साहवर्धन करो पर शेष 34 बच्चों को नालायक, कामचोर, लापरवाह, Duffer, Failure घोषित मत करो। *मछली बेशक़ पेड़ पर न चढ़ पाये पर एक दिन वह पूरा समंदर नाप देगी।*
यह बात माता-पिता / अभिभावक को समझने चाहिए।

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